आइआइटी कानपुर तैयार कर रही है विशेष तकनीक,दुश्मन का ड्रोन हमला रोकने के साथ जासूसी पर भी लगाम

कानपुर हवाई हमलों में फाइटर प्लेन और मिसाइल के साथ अब ड्रोन भी खतरनाक हो गए हैं। ड्रोन के सहारे न सिर्फ जासूसी हो रही है, बल्कि कई देशों में हमले भी हुए हैं। शनिवार रात जम्मू के एयरफोर्स स्टेशन पर ड्रोन से दो हमले किए गए। अपने देश में यह पहला मामला था। रविवार रात फिर सैन्य मुख्यालय पर ड्रोन मंडराते दिखे। अब ड्रोन हमले और जासूसी रोकने के लिए आइआइटी कानपुर की तकनीक काम आएगी।

दुश्मन देश के ड्रोन हमले रोकने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी), कानपुर विशेष तकनीक तैयार कर रहा है। इसकी मदद से न सिर्फ हमलावर ड्रोन का ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम (जीपीएस) हैक किया जा सकेगा, बल्कि उसे जाल डालकर पकड़ा भी जा सकेगा। इस तकनीक को विकसित करने पर आइआइटी विशेषज्ञ काम कर रहे हैं, जिसका फायदा भारतीय सेना को मिलेगा।

योजना पर चल रहा काम: आइआइटी के विशेषज्ञ ऐसा तंत्र विकसित कर रहे हैं, जिससे छोटे-छोटे कई ड्रोन एक साथ उड़ेंगे और सरहद पार से आने वाले ड्रोन पर जाल डाल देंगे। उसके रोटेटर को रोकने की कोशिश रहेगी। दुश्मन ड्रोन के जीपीएस और कम्युनिकेशन सिस्टम को हैक कर उसे आगे बढ़ने से रोका जा सकेगा। ड्रोन को दूसरी ओर से मिल रहे सिग्नल को ब्लाक करने की कोशिश होगी। ड्रोन में रिटर्न टू ओरिजिन (जहां से आया, वहां वापस) के विकल्प को रोकने की तैयारी रहेगी। इस तकनीक को अभी कंपनियां पिज्जा व अन्य सामान डिलीवरी करने के बाद ड्रोन वापस बुलाने में इस्तेमाल करती हैं।

आइआइटी में बने ड्रोन नहीं आएंगे रडार पर : आइआइटी में विभ्रम, सुदर्शन, काकरोच समेत अन्य ड्रोन तैयार हुए हैं। यह अत्यधिक ऊंचाई पर उड़ने के साथ ही सुरक्षित लैंडिंग में सक्षम हैं। इन ड्रोन को आपदा प्रबंधन के लिए इस्तेमाल किया जा चुका है। ये सíवलांस के लिए भी मुफीद हैं। इनमें अब और अत्याधुनिक तकनीक विकसित की जा रही है, जिससे ये दुश्मन के रडार पर न आ सकें।

  • आइआइटी के कुछ विशेषज्ञ खास तरह की तकनीक वाले ड्रोन तैयार करने पर काम कर रहे हैं। इस दिशा में काफी काम हो चुका है। सब ठीक रहा तो जल्द बेहतर परिणाम आएंगे। सुरक्षा कारणों से इस पर ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता है।

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