देहरादून। 10 जून को तीन माह का कार्यकाल पूरा करने जा रहे मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के दिल्ली दौरे से उत्तराखंड को आने वाले दिनों में कुछ बड़ी सौगात मिल सकती है। उन्होंने दिल्ली प्रवास के दौरान जिस तरह से महत्वपूर्ण मंत्रालयों के मंत्रियों से मुलाकात कर राज्य के लिए मदद मांगी, उससे यह उम्मीद जगी है। उनके इस दौरे को आगामी विधानसभा चुनाव के लिहाज से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि केंद्र से मिलने वाली सौगात का लाभ विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिलेगा। यही नहीं, राज्य विधानसभा का सदस्य बनने के लिए संवैधानिक बाध्यता के तहत मुख्यमंत्री को विधायक का चुनाव भी लड़ना है।
प्रदेश की भाजपा सरकार में नेतृत्व परिवर्तन के बाद 10 मार्च को गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत ने मुख्यमंत्री के रूप में कमान संभाली। उनके सामने खुद को साबित करने के साथ ही सात-आठ माह बाद होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव की चुनौती भी है। ऐसे में जरूरी है कि कोरोना संकट से उपजी विपरीत परिस्थितियों में राज्य के विकास को गति देने के साथ ही केंद्र सरकार से भी कुछ बड़ी योजनाएं हासिल की जाएं। इस पर मुख्यमंत्री ने फोकस किया है, जो उनके दो दिवसीय दिल्ली दौरे के दरम्यान झलका भी। फिर चाहे वह राज्य के सीमांत क्षेत्रों के विकास की बात हो या लघु जल विद्युत परियोजनाओं की अथवा स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार के मद्देनजर कुमाऊं मंडल में एम्स और कोटद्वार में मेडिकल कालेज की स्थापना की मांग, ये सभी मसले उन्होंने केंद्रीय मंत्रियों के समक्ष रखे और केंद्र से सकारात्मक कार्रवाई का आश्वासन भी मिला। इससे राज्य को कुछ नई याेजनाएं मिलने की उम्मीद जगी है।
हालांकि, मुख्यमंत्री के दिल्ली दौरे को दायित्व वितरण से भी जोड़कर देखा जा रहा था, लेकिन इस सिलसिले में उनकी अब तक राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत अन्य पदाधिकारियों से मुलाकात नहीं हो पाई। राज्य में विभिन्न निगमों व प्राधिकरणों में दायित्व बांटे जाने हैं। अब जबकि विधानसभा चुनाव के लिए वक्त कम रह गया है तो ऐसे फार्मूले की तलाश है, जिससे पार्टी नेताओं को दायित्व भी बंट जाएं और कहीं कोई विरोध के सुर भी न उभरें। इसी लिहाज से पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से मुख्यमंत्री की बातचीत होनी थी। माना जा रहा कि अगले कुछ दिनों में मुख्यमंत्री इस बारे में केंद्रीय नेतृत्व से विमर्श के बाद कोई फैसला लेंगे।