कहीं जंगलों में पेड़ों का अवैध कटान तो कहीं शिकारियों और तस्करों का बेजबानों पर मंडराता खतरा। यही नहीं, आबादी वाले क्षेत्रों में होश फाख्ता करती हाथी, गुलदार, भालू जैसे वन्यजीवों की धमक। विषम भूगोल और 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में फिलवक्त तो सूरतेहाल कुछ ऐसा ही है। हालांकि, अब निगरानी तंत्र को सशक्त करने की दिशा में आधुनिक तकनीकी का सहारा लिया जा रहा है। इस कड़ी में कार्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व समेत वन विभाग के सभी सर्किलों को ड्रोन मुहैया कराए गए हैं। आसमान से ड्रोन पर लगे कैमरों की मदद से जंगलों के चप्पे-चप्पे पर नजर रहेगी। यानी, जंगल सुरक्षित रहेंगे और बेजबान भी। साथ ही वन्यजीवों के मूवमेंट का भी पता लगता रहेगा।
जंगल सुरक्षित रहेंगे तो पर्यावरण भी बचेगा और बचेंगे जंगलों में रहने वाले वन्यजीव। इस सबके मद्देनजर ही उत्तराखंड में फॉरेस्ट ड्रोन फोर्स की अवधारणा को धरातल पर उतारने का निर्णय हुआ। वर्ष 2018 में ड्रोन फोर्स अस्तित्व में आई और पिछले दो वर्षों के कालखंड में इसने अपने औचित्य को सही भी ठहराया है। प्रायोगिक तौर पर गत वर्ष हुई हाथी गणना के साथ ही मगरमच्छ, घड़ियाल और ऊदबिलाव के आकलन में ड्रोन का इस्तेमाल उपयोगी साबित हुआ। कुछ इलाकों में पेड़ों के अवैध पातन और खनन की घटनाओं पर नकेल कसने को भी ड्रोन का इस्तेमाल किया गया।
मानसून सीजन में कुछ ऐसे स्थलों की रेकी की गई, जहां वनकर्मियों का पहुंचना दुष्कर था। अब निगरानी तंत्र की मजबूती के लिए वन विभाग के सभी 10 सर्किलों के 44 वन प्रभागों को ड्रोन मुहैया कराए गए हैं। ड्रोन के संचालन के लिए वनकर्मियों का प्रशिक्षण भी अंतिम चरण में है। कार्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व में तो ड्रोन से निगरानी प्रारंभ कर दी गई है। जाहिर है इस पहल से वन एवं वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए बड़ा सुरक्षा कवच हासिल हुआ है। आने वाले दिनों में आसमान से ड्रोन पर लगे कैमरों से जंगलों की निगरानी होगी।
इससे यह भी पता चल सकेगा कि जंगल में कौन घुसा है। वनकर्मी गश्त कर रहे हैं या नहीं। जिस क्षेत्र में पौधारोपण कराया गया है, उसकी स्थिति क्या है। कहीं पेड़ों का अवैध कटान अथवा नदियों से खनन तो नहीं हो रहा। साफ है कि इस मुहिम से पर्यावरण को महफूज रखने में मदद मिलेगी तो यह मानव-वन्यजीव संघर्ष को थामने में भी मददगार होगी। यदि वन क्षेत्र से लगे किसी इलाके में कोई वन्यजीव आबादी की तरफ रुख करेगा तो उसकी जानकारी मिलने पर तुरंत सुरक्षात्मक उपाय किए जा सकेंगे।
सामने आएगा गुलदारों का सच
उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष चिंताजनक स्थिति में पहुंच गया है। गुलदारों के खौफ ने सबसे ज्यादा नींद उड़ाई है। गुलदारों के व्यवहार में आ रहे बदलाव के मद्देनजर वर्तमान में चार गुलदारों पर रेडियो कॉलर लगाकर अध्ययन चल रहा है। इसकी अध्ययन रिपोर्ट साल के मध्य तक आने की उम्मीद है। यही नहीं, गुलदारों की गणना का निर्णय भी लिया गया है और यह मुहिम आने वाले दिनों में शुरू होगी।
ये उपाय भी होंगे तेज
मानव-वन्यजीव संघर्ष को न्यून करने के लिए वन सीमा पर वन्यजीवरोधी बाड़, संवेदनशील गांवों में विलेज वालेंटरी प्रोटेक्शन फोर्स का गठन समेत दूसरे कदम उठाने की योजना तैयार कर ली गई है। इनके भी आने वाले दिनों में धरातल पर आकार लेने की उम्मीद है।
बढ़ेगा बाघों का कुनबा
बाघ संरक्षण में उत्तराखंड अग्रणी भूमिका निभा रहा है, लेकिन इन प्रयासों में इस वर्ष और तेजी आएगी। इसी कड़ी में कार्बेट टाइगर रिजर्व से राजाजी टाइगर रिजर्व के मोतीचूर-धौलखंड क्षेत्र में बाघ शिफ्टिंग की पहल प्रारंभ हो गई है। वहां एक बाघिन शिफ्ट की जा चुकी है और धीरे-धीरे चार अन्य बाघ भी एक-एक कर वहां शिफ्ट होंगे। लिहाजा, मोतीचूर-धौलखंड क्षेत्र न सिर्फ बाघों की दहाड़ से गूंजेगा, बल्कि वहां इनका कुनबा भी बढ़ेगा।
बेपर्दा होगा हिम तेंदुओं का राज
राज्य के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हिम तेंदुओं की ठीकठाक संख्या होने का अनुमान है, लेकिन इनकी वास्तविक संख्या है कितनी इस राज से भी जल्द पर्दा उठ जाएगा। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हिम तेंदुओं की गणना का पहला फेज पूरा हो चुका है। दूसरे फेज में फरवरी-मार्च में वहां दोबारा सर्वे और फिर कैमरा ट्रैप लगाए जाएंगे। नवंबर तक गणना के आंकड़े मिलने पर हिम तेंदुओं की वास्तविक संख्या सामने आ सकेगी।